Shayari ||"गालिब के शेर °|| Galib ke sher ||

Galib ke sher ||गालिब के शेर ।।

तजुरबे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूँ,
कोई प्यार जताये तो, खुद को सम्भाल लेता हूँ...

नहीं करता थप्पड़ के बाद, दूसरा गाल आगे,
खंजर खींचें कोई, तो मैं तलवार निकाल लेता हूँ...

वक़्त था सांप का तस्सवुर डरा देता था,
अब कुछ तो मैं, आस्तीन में पाल लेता हूँ...

मुझे फांसने की कहीं साज़िशे ना हो,
हर मुस्कान ठीक से जाँच पड़ताल लेता हूँ...

बहुत जला चुका ऊंगलियाँ, मैं पराई आग में,
अब झगड़े में कोई बुलाये, तो मैं टाल देता हूँ...

सहेज के रखा था दिल, जब शीशे का था,
पत्थर का हो चुका अब, मज़े से उछाल लेता हूँ.....


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तेरे ख़ामोश तकल्लुम का सहारा हो जाऊँ
तेरा अंदाज़ बदल दूँ तिरा लहजा हो जाऊँ
तू मिरे लम्स की तासीर से वाक़िफ़ ही नहीं
तुझ को छू लूँ तो तिरे जिस्म का हिस्सा हो जाऊँ
तेरे होंटों के लिए होंट मेरे आब-ए-हयात
और कोई जो छुए ज़हर का प्याला हो जाऊँ
कर दिया तेरे तग़ाफ़ुल ने अधूरा मुझ को
एक हिचकी अगर आ जाए तो पूरा हो जाऊँ
दिल ये करता है कि इस उम्र की पगडंडी पर
उल्टे पैरों से चलूँ फिर वही लड़का हो जाऊँ
अपनी तकलीम का कुछ ज़ाइक़ा तब्दील करूँ
तुझ से बिछड़ूँ मैं ज़रा देर अधूरा हो जाऊँ
दिल कि सोहबत मुझे हर वक़्त जवाँ रखती है
अक़्ल के साथ चला जाऊँ तो बुढ्ढा हो जाऊँ
इस क़दर चीख़ती रहती है ख़ामोशी मुझ में
शोर कानों में उतर जाए तो बहरा हो जाऊँ
तेरे चढ़ते हुए दरिया को पशेमाँ कर दूँ
तुझ को पाने के लिए रेत का सहरा हो जाऊँ
आप हस्ती को तिरे शौक़ पे क़ुर्बान करूँ
तू अगर तोड़ के ख़ुश हो तो खिलौना हो जाऊँ


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मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया
एक पागल ने बहुत लोगों को पागल कर दिया

अपनी पलकों पर सजा कर मेरे आँसू आप ने
रास्ते की धूल को आँखों का काजल कर दिया

मैं ने दिल दे कर उसे की थी वफ़ा की इब्तिदा
उस ने धोका दे के ये क़िस्सा मुकम्मल कर दिया

ये हवाएँ कब निगाहें फेर लें किस को ख़बर
शोहरतों का तख़्त जब टूटा तो पैदल कर दिया

देवताओं और ख़ुदाओं की लगाई आग ने
देखते ही देखते बस्ती को जंगल कर दिया

ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया

शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है
जिस ने अच्छे-ख़ासे इक शायर को पागल कर दिया

-राहत इंदौरी

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सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है

मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है

मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है

बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है

ज़िंदगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है


लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में

और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन सांप रखता है उस के आशियाने में

दूसरी कोई लड़की ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है उस को भूल जाने में


मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने
बस एक शख़्स को मांगा मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

बशीर बद्र
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शहरों-शहरों गाँव का आँगन याद आया
झूठे दोस्त और सच्चा दुश्मन याद आया

पीली पीली फसलें देख के खेतों में
अपने घर का खाली बरतन याद आया

गिरजा में इक मोम की मरियम रखी थी
माँ की गोद में गुजरा बचपन याद आया

देख के रंगमहल की रंगीं दीवारें
मुझको अपना सूना आँगन याद आया

जंगल सर पे रख के सारा दिन भटके
रात हुई तो राज-सिंहासन याद आया

-राहत इंदौरी

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कोई कब तक महज सोचे,
कोई कब तक महज गाए.

ईलाही क्या ये मुमकिन है कि
कुछ ऐसा भी हो जाऐ.

मेरा मेहताब उसकी रात के
आगोश मे पिघले

मैं उसकी नींद में जारों
वो मुझमे घुल के सो जाऐ

~कुमार विश्वास

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ऐ जिंदगी मै नहीं रहा अब पहले की तरहा
दिल से कुछ ना कहा अब पहले की तरहा
तोड़ दिया दिल उसने फिर एक बार मेरा
पर हमने जख्म ना सहा अब पहले की तरहा

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है दिल कितना टूटा ये शराब का पैमाना बताता है,

इश्क तेरे चर्चे अब हर शराबी बताता है,
इश्क तेरे बाजार में सच्चा दिलदार कहां टिक पाता है,
है दिल कितना टूटा ये शराब का पैमाना बताता है।

आखिर तू इतना सच्चा होता गर तो ये कहां होता ,
सच्चे दिलदार को तू दर- बदर यूं ना भटकाता,
तू दूर से बहुत अच्छा दिखता था,लेकिन अब टूटा हुआ दिल दूर रहने की कसमें खाता है,
है दिल कितना टूटा ये शराब का पैमाना बताता है।

तू तो रूह की कसम देकर जिस्म का मोल लगाता है,
अरे कभी मिलना तो बताएंगे मेरे यार ,
दिल को निकाल कर मौत भी जिंदगी का फैसला सुनाता है।

हां मशहूर  तो बहुत था तू
अब दूसरों को मशहूर बनाता है,
है दिल कितना टूटा ये शराब का पैमाना बताता है।।

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जी भर के देखूं तुझे अगर तुझको गवारा हो...

बेताब मेरी नजरें हो और चेहरा तुम्हारा हो...

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तोड़ना टूटे हुये दिल का बुरा होता है.

जिस का कोई नहीं उस का तो ख़ुदा होता है.

माँग कर तुम से ख़ुशी लूँ मुझे मंज़ूर नहीं,

किस का माँगी हुई दौलत से भला होता है.

लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा,

आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है.

क्यों "मुनिर" अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा,

जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है.
             
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लाखों शक्लों के मेले में तनहा रहना मेरा काम

भेस बदल कर देखते रहना तेज़ हवाओं का कोहराम

एक तरफ़ आवाज़ का सूरज एक तरफ़ इक गूँगी शाम

एक तरफ़ जिस्मों की ख़ुश्बू एक तरफ़ इस का अन्जाम

बन गया क़ातिल मेरे लिये तो अपनी ही नज़रों का दाम

सब से बड़ा है नाम ख़ुदा का उस के बाद है मेरा नाम.
   
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पेड़ शर्त नहीं माने इसलिए कट गए
गमलों ने हदें तय की तो आसरा मिला।

लोग कहते है वक़्त हर ज़ख़्म भर देता है,

मगर किताबों पर धूल जम जाने से कहानी बदला नहीं करती !
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सच को तमीज़ ही नहीं, बात करने की..
झूठ को देखो, कितना मीठा बोलता है..

कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया

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साकी देख ज़माने ने हम पे क्या इल्ज़ाम लगाया है..
आंखें उनकी  नशीली हैं और शराबी हमें बताया है.!
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वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता।।

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उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है

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मुझे अब  खुद में एक दीवाना दिखता है
मेरी आँख का हर खुआब बिराना दिखता है
   
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